यह कहानी एक व्यक्ति के अनुभव के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने पड़ोसी, चाचा जी, से मिलते हैं। चाचा जी सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर नाराजगी प्रकट करते हैं, जैसे कि दिवाली पर पटाखे न जलाने और होली पर पानी बचाने की सलाह। वे यह भी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट राम मंदिर के मामले में निर्णय नहीं ले रहा है। इसके बाद, एक और व्यक्ति, शांतीलाल जी, सुप्रीम कोर्ट के पर्यावरण के अनुकूल निर्णय की तारीफ करते हैं, जिससे स्थिति और जटिल हो जाती है। कहानी में यह दर्शाया गया है कि लोगों की संस्कृति और सभ्यता की रक्षा की जिम्मेदारी नेताओं और सुप्रीम कोर्ट पर डालकर वे अपने व्यक्तिगत जीवन में उलझे हुए हैं। लोग अपने परिवार के झगड़ों में फंसे हुए हैं और देश की समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। अंततः, कहानी यह संदेश देती है कि हम सभी को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास करना चाहिए और सक्रिय रूप से अपने समाज में भाग लेना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा
Mahendra Rajpurohit द्वारा हिंदी पकाने की विधि
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विवरण
सुप्रीम कोर्ट की हालात (घर की मुर्गी दाल बराबर) जैसी हों गई है,,या यूं कहें, 45 का पती देव बन गया है,, न बच्चे सुनें, न घरवाली,आते जाते पड़ोसी भी कुछ बोल कर चले जाते ,आज तों हमारे काका के पड़ोसी, बनवारी लाल से बिच बाजार में मुलाकात हो गई ,वहीं 45 वाले पति देव, घर में तो कोई सुनता नहीं है, सोचा अच्छा मौका है भड़ास निकालने का- मेंने रास्ते से दूर निकलकर अनदेखा करना चाहा ,पर उनसे पहले तो आवाज आ गई , ओ माही कहां जा रहा है इतनी रात को,, मैंने कहा ओह चाचाजी आप, यहां
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