हुस्न तबस्सुम निहाँ रहमत के घर फिर अचानक तोड़-फोड़ शुरू हो गई थी। लोग बाग दौड़ पड़े थे और ...
विकासवाद गांव अपने स्वाभाविक सुरमईपन में घुल रहा था। खलिहानों से खेत की मेड़ों तक धीमे-धीमें उस अंधेरे में ...
रेल में रेगिस्तान रात एक बजे का समय। बंगलौर की ओर प्रस्थान करने वाली कर्नाटक एक्सप्रेस जलगांव के समीप ...
ये बेवफाइयां मेरे दोनों शौहर आपस में भिड़े पड़े थे और मैं तकिए के गिलाफ में बूटें काढ़ती हुई ...
ये डूबना साहिलों पे ‘‘अम्मी...ओ अम्मी...जल्दी उठो...सुनो तो...नसीमा भाग गई’’ ‘‘हैं..कि...किसके साथ...?’’ अम्मी चद्दर फेंक के उठ बैठीं। और ...
भई यह दुनिया है दुनिया सुभान भाई के घर से अलस्सुबह सयास ही दहाड़ मारू रूदन का सोता फूट ...
फिरोजी रेखाओं के नीड़ प्रेम हमेशा स्थिर नहीं रहता। यह चंद्रमाओं की कलाओं की तरह घटता रहता है...बढ़ता रहता ...
निर्मम अंधेरे ‘‘ हे....दीदी, तू हिजड़ी है का ?‘‘ -छुटके ने तपाक से बोला तो डेहरी पर से लहसुन ...
दायरों के दरम्यां अचानक सुबह फोन बजा तो अब्बा चैंक पड़े। रिसीव किया तो पता चला अगले महीने अफजल ...
तैय्यब अली प्यार का दुश्मन दिन का मुँह धुंआं धुआं हो रहा था। सूरज अपने कंधे पर दिन का ...