Manisha Kulshreshtha - Stories, Read and Download free PDF

सातवां होल

by Manisha Kulshreshtha
  • 4.5k

शाम चार बजते ही रिटायर्ड लेफ्टिनेन्ट कर्नल केशव शर्मा पांच किलोमीटर सायकिल चला कर गोल्फकोर्स पर आ डटते हैं। ...

यस !

by Manisha Kulshreshtha
  • 6.1k

वह रन वे पर स्टार्टअप पॉइंट पर खड़ा था और मैं ए टी सी (एयर ट्रेफिक कंट्रोल टॉवर) में ...

सुनहरा फ्रेम

by Manisha Kulshreshtha
  • 4.2k

कुछ अलौकिक पलों को दुबारा निराकार तौर पर जीने की आत्मछलना का ही दूसरा नाम है 'स्मृति'. एक स्मृति ...

ब्रेनफीवर

by Manisha Kulshreshtha
  • (3.9/5)
  • 5.2k

वह रसोई से बाहर निकली, आखिरी काम समेट, पल्लू से चेहरे का पसीना पोंछती। घर से लगे उसके पति ...

समुद्री घोड़ा

by Manisha Kulshreshtha
  • 15.9k

वह दोनों तरफ से अंधेरे अधर में लटके किसी रस्सों से बने पुल पर भाग रहा था। डगमग झूलता ...

किरदार

by Manisha Kulshreshtha
  • (4.1/5)
  • 10.2k

बहुत कुछ ...छोड़ गई थी वह हमारे कमरे में. कंघे में फँसे बाल. नीली, उतारी हुई नाईटी को अपनी ...

ब्लैकहोल

by Manisha Kulshreshtha
  • 8.9k

आखिरकार मैं पिता हूँ. मेरी हथेलियों को ग्लानि नम कर गई है, जिसे मैं बार – बार पौंछ रहा ...

ठगिनी

by Manisha Kulshreshtha
  • (4.4/5)
  • 11.1k

मरूस्थल के आठ गांवों में वह इकलौता ताल था, थे तो जेठ के गरम दिन, लेकिन रात ठंडी थी ...

मधुमक्खियाँ

by Manisha Kulshreshtha
  • 4.9k

बहुत अलग थी वह शाम, अबाबीलें सर पर गोल चक्कर काट रहीं थीं. बावड़ी की मेहराबों के नीचे बने ...

परजीवी

by Manisha Kulshreshtha
  • 7.3k

मैं हमेशा से परजीवी नहीं था, मेरे पास नौकरी थी. तुमने शादी की ज़िद की और नौकरी भी छुड़वा ...