Dr Narendra Shukl - Stories, Read and Download free PDF

खोटा सिक्का

by Dr. Narendra Shukl
  • 15.3k

‘....ऑटो !‘ बस से उतरकर , कंधे पर लटके बैग को संभालते हुये बस अडडे के सामने , चैराहे ...

हाय रे विज्ञापन !

by Dr. Narendra Shukl
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मैं श्री कृष्ण का शुद्ध भक्त हूँ । प्रतिदिन सुबह - सुबह मंदिर अवश्य जाता हूँ । मंदिर ...

बीवी संग न खेलो होली

by Dr. Narendra Shukl
  • 8k

आज मेरे मित्र राधेश्याम , सुबह से ही भांग छान आये थे । आते ही बमके - बीवी संग ...

मेरी चार प्रेम कहानियों का गैर फिल्मी अंत

by Dr. Narendra Shukl
  • 5.6k

प्रेम एक ऐसा अनोखा रोग है जिसकी पीड़ा भी सुखदायी होती है । यहां रोगी मरता नहीं जी जाता ...

सत्य की खोज़ में महात्मा गांधी

by Dr. Narendra Shukl
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गांधी जी के जन्म दिवस पर स्वर्ग में टी - पार्टी चल रही थी । गांधी जी एक ओर ...

फिर सुनना मुझे

by Dr. Narendra Shukl
  • 7.2k

अमन बिक रहे हैं अमन बिक रहे हैं , चमन बिक रहे हैं । लाशों से लेकर कपन बिक ...

आओ प्रजातंत्र - प्रजातंत्र खेलें ।

by Dr. Narendra Shukl
  • 8.2k

विवेक नगर के राजा मंदबुद्धि सिंह को अपने अंतिम दिनों में परमार्थ की सूझी । उन्होने महामंत्री नैन ज्योति ...

दीवाली सेल है भाई .... !

by Dr. Narendra Shukl
  • 6.4k

शनिवार को श्रीमती जी द्वारा लगातार अनुरोध करने व रात डिनर न मिलने के भय को देखते हुये मैं ...

बेबस आंखें

by Dr. Narendra Shukl
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बेबस आंखें सब कुछ , देखती हैं आंखें - प्रियतम का इंतज़ार करती प्रेमिका को मीनार शिखर पर बांग ...

दोहरी मार

by Dr. Narendra Shukl
  • 4.7k

आलू है । गोभी है । प्याज़ है । ‘ रात के करीब आठ बजे कड़कती ठंड में ...