Vrajesh Shashikant Dave - Stories, Read and Download free PDF

अन्तर्निहित - 15

by Vrajesh Shashikant Dave

[15]“शैल, इस प्रकार किसी निर्दोष व्यक्ति को प्रताड़ित करना पुलिसवालों का स्वभाव होता है यह मैं जानती थी। इसीलिए ...

अंतर्निहित - 14

by Vrajesh Shashikant Dave
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[14]सूरज अब अस्त हो चुका था। पश्चिम आकाश अपना रंग बदल रहा था। शैल भी अपना रंग बदल रहा ...

अंतर्निहित - 13

by Vrajesh Shashikant Dave
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13]त्रिवेंद्रम रेलवे स्टेशन पहुंचकर शैल ने वत्सर के गाँव तक की यात्रा टेक्सी से पूरी की। गाँव में उसने ...

अंतर्निहित - 12

by Vrajesh Shashikant Dave
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[12]“देश की सीमा पर यह जो घटना घटी है वह वास्तव में तो आज कल नहीं घटी है।”“क्या मतलब ...

अंतर्निहित - 11

by Vrajesh Shashikant Dave
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[11]रात्री के भोजन के उपरांत सारा सोने के लिए सज्ज हो रही थी तभी उसके द्वार को किसी ने ...

अंतर्निहित - 10

by Vrajesh Shashikant Dave
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[10]प्रात: होते ही सारा खुली हवा में कुछ समय तक घूमने चली गई। प्रभात की वेला में उसे भारत ...

अंतर्निहित - 9

by Vrajesh Shashikant Dave
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[9]येला गंगटोक लौटने की तैयारी कर रही थी तब उसने समाचार में देखा कि किसी एक नगर में पुलिसवालों ...

अंतर्निहित - 8

by Vrajesh Shashikant Dave
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[8]सारा ने द्वार बंद कर दिया, गवाक्ष को खोल दिया। एक मंद समीर ने भीतर प्रवेश कर लिया और ...

अंतर्निहित - 7

by Vrajesh Shashikant Dave
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[7]शैल ने कुछ समय विचार किया। मन में योजना बनाई पश्चात उसने फोन लगाया।“महाशय, मुझे किसी पारिवारिक कार्य से ...

अंतर्निहित - 6

by Vrajesh Shashikant Dave
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[6]मृतदेह मिलने की घटना को तीन दिन हो गए। शैल ने अपने अन्वेषण के सभी पक्षों से प्रयास किया ...