Vrajesh Shashikant Dave - Stories, Read and Download free PDF

द्वारावती - 75

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 603

75 “मैं मेरी ...

द्वारावती - 74

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 504

74उत्सव काशी में बस गया था। काशी को अत्यंत निकट से उसने देखा - परखा। उसके भीतर एक सर्जक ...

द्वारावती - 73

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 543

73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच गया। चारों दिशाओं में घना जंगल था। ...

द्वारावती - 72

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 585

72दोनों ने अदृश्य ध्वनि की आज्ञा का पालन किया। जिस बिंदु पर दोनों ने दृष्टि रखी वहाँ दृश्य दिखाई ...

द्वारावती - 71

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 591

71संध्या आरती सम्पन्न कर जब गुल लौटी तो उत्सव आ चुका था। गुल की प्रतीक्षा कर रहा था।“गुल, मुझे ...

द्वारावती - 70

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 702

70लौटकर दोनों समुद्र तट पर आ गए। समुद्र का बर्ताव कुछ भिन्न दृष्टिगोचर हो रहा था। बालक की भाँति ...

द्वारावती - 69

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 615

69 ...

द्वारावती - 67 - 68

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 693

67महादेव की संध्या आरती से जब गुल लौटी तब उत्सव तट पर खड़ा था। उसने गुल को निहारा। गुल ...

द्वारावती - 66

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 711

66सूर्योदय हुआ। गुल अपने नित्य कर्म पूर्ण कर, भड़केश्वर महादेव की आरती-पूजा-अर्चना कर लौट आइ। उस समय उत्सव वहाँ ...

द्वारावती - 65

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 792

65 “ओह, यह ...