Ashok Gupta - Stories, Read and Download free PDF

हरे रंग का खरगोश

by Ashok Gupta
  • 5.1k

मैं प्रभुनाथ की बगीची से पैदल पैदल वापस लौट रहा था. मैंने वहां करीब ढाई घंटे बिताये थे. यहाँ ...

सबका उजाला

by Ashok Gupta
  • 3.6k

' हबीब चिक वाला ' सामने बोर्ड देख कर अनीस ने रिक्शा रुकवा लिया.उस कस्बे में सुबह बस अंगडाई ले ...

शोक वंचिता

by Ashok Gupta
  • 4.9k

उस समय रात के डेढ़ बज रहे थे... कमरे की लाईट अचानक जली और रौशनी का एक टुकड़ा खिड़की से ...

शताब्दी

by Ashok Gupta
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वह युवक, जो अपने बूढे माता पिता को लेकर शताब्दी एक्सप्रेस के चेयर कार कोच में तीर्थयात्रा के लिए ...

रूट नंबर थर्टीन

by Ashok Gupta
  • 3.7k

अगर किसी दहब वह बस ज़मीन पर न चल रही होती तो हवाई जहाज़ की कहलाती. बात एरोफ्लोट क्लब ...

राग चिरंतन भोर वितान

by Ashok Gupta
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शाम तीन बज कर बीस मिनट हो ही रहे है की गली में खडंजे वाले रास्ते पर ...

प्रतिध्वनि

by Ashok Gupta
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करीब चालीस मिनट बीतने को आये थे. वह घायल लड़का अस्पताल के बराम्दे में एक नंगे बेड पर ...

नींद

by Ashok Gupta
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शहर की सड़क से मीलों दूर, खेत खेत और पगडण्डी पगडण्डी भीतर पहुंचते उस ठेठ गांव में अगर कोई ...

Daridra

by Ashok Gupta
  • 10.7k

प्लांटरूम के बगल वाले कॉरिडोर से जाने वाली लिफ्ट सीधे दूसरे तल पर रूकती है और वहीँ ठीक सामने ...

तिलस्म टूट गया है

by Ashok Gupta
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सुबह अखबार आते थे तो उनमें रंग बिरंगे, छोटे बड़े पैम्फलेट्स निकलते और बच्चे उन्हें लूटने के लिये झपट ...